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महिला ने पति की हत्या कर बाथरूम में दफनाया
भाषा| Mar 28, 2012, 07.19 PM IST
मेरठ।।
महिला ने पति का गला रेत कर उसकी हत्या कर दी और लाश को घर के
बाथरूम में गड्ढ़ा खोदकर दफना दिया। पुलिस ने पत्नी को
गिरफ्तार कर लिया है। महिला का कहना है कि पति के अत्याचार से तंग आकर
यह कदम उठाना पड़ा। हत्या के पीछे अवैध संबंध की भी जांच की जा रही है।
सेना से रिटायर्ड राजेंद्र पटेल (40) मेरठ के गंगानगर के डी ब्लॉक में अपनी पत्नी वर्षा पटेल (27), बेटी प्रिया (9) और बेटा तृगन (3) रहता था। रिटायरमेंट के बाद वह नोएडा की एक कंपनी में गार्ड का काम करने लगा था। कुछ दिनों पहले राजेंद्र ने इस मकान को अपने फौजी साथी के हाथों 13 लाख रुपये में बेच दिया था। 26 मार्च को वर्षा कचहरी जाकर बैनामा कर आई थी। 4 लाख रुपये की पेमेंट बाकी थी, इसलिए तय हुआ था कि खरीदार बाकाया पैसा जल्द ही देकर 2 अप्रैल को मकान पर कब्जा ले लेगा।
खरीदार जब मंगलवार को इस बारे में बात करने आया तो वर्षा ने बताया कि राजेंद्र लंबे समय के लिए गए हुए हैं, इसलिए वह पैसे उसे देकर मकान में कब्जा ले ले। खरीदार जब मकान के अंदर पहुंचा तो बाथरूम में नया प्लास्टर देखकर उसे कुछ शक हुआ। पड़ोसियों से बातचीत में उसे पता चला कि सोमवार को पति-पत्नी में झगड़ा हुआ था, जिसके बाद से पति गायब है। खरीदार ने पुलिस को जानकारी दी। पुलिस ने मामला संदिग्ध देख जब उस जगह की खुदाई कराई तो वहां से राजेंद्र का शव निकला। पुलिस ने वर्षा को हिरासत में लेकर पूछताछ की तो उसने सारा राज उगल दिया।
वर्षा ने बताया कि उसने 2002 में राजेंद्र से लव मैरिज की थी , लेकिन राजेंद्र शादी के बाद शराब पीकर उससे मारपीट करता था। वह घर में भी सेना की तरह अनुशासन चाहता था। उसकी इस आदत से वह बहुत परेशान रहने लगी थी। सोमवार की रात जब उसने उसके साथ मारपीट की तो उसने उसे खत्म कर मकान के पैसे लेकर गुजरात जाने का मन बना लिया था। रात को जब राजेंद्र सो रहा था तभी उसने उसके गले पर हंसिए से वार कर उसे मौत की नींद सुला दिया था। उसने कहा कि उसे पति की हत्या का कोई गम नही है। उसे सिर्फ अपने बच्चों के भविष्य की चिंता है।
पुलिस सूत्रों के मुताबिक वर्षा के संबंध शहर के ही एक युवक से हैं। कुछ दिनों पहले वर्षा 15 दिनों के लिए घर से भागी भी थी। मोहल्ले वालों ने भी पुलिस को बताया है कि वर्षा मोबाइल पर लंबी बात करती थी। पुलिस के मुताबिक, वर्षा के फोन कॉल डिटेल के आधार पर आगे जांच होगी। पुलिस को शक है हत्या और शव गाड़ने का काम अकेली महिला नहीं कर सकती।
सेना से रिटायर्ड राजेंद्र पटेल (40) मेरठ के गंगानगर के डी ब्लॉक में अपनी पत्नी वर्षा पटेल (27), बेटी प्रिया (9) और बेटा तृगन (3) रहता था। रिटायरमेंट के बाद वह नोएडा की एक कंपनी में गार्ड का काम करने लगा था। कुछ दिनों पहले राजेंद्र ने इस मकान को अपने फौजी साथी के हाथों 13 लाख रुपये में बेच दिया था। 26 मार्च को वर्षा कचहरी जाकर बैनामा कर आई थी। 4 लाख रुपये की पेमेंट बाकी थी, इसलिए तय हुआ था कि खरीदार बाकाया पैसा जल्द ही देकर 2 अप्रैल को मकान पर कब्जा ले लेगा।
खरीदार जब मंगलवार को इस बारे में बात करने आया तो वर्षा ने बताया कि राजेंद्र लंबे समय के लिए गए हुए हैं, इसलिए वह पैसे उसे देकर मकान में कब्जा ले ले। खरीदार जब मकान के अंदर पहुंचा तो बाथरूम में नया प्लास्टर देखकर उसे कुछ शक हुआ। पड़ोसियों से बातचीत में उसे पता चला कि सोमवार को पति-पत्नी में झगड़ा हुआ था, जिसके बाद से पति गायब है। खरीदार ने पुलिस को जानकारी दी। पुलिस ने मामला संदिग्ध देख जब उस जगह की खुदाई कराई तो वहां से राजेंद्र का शव निकला। पुलिस ने वर्षा को हिरासत में लेकर पूछताछ की तो उसने सारा राज उगल दिया।
वर्षा ने बताया कि उसने 2002 में राजेंद्र से लव मैरिज की थी , लेकिन राजेंद्र शादी के बाद शराब पीकर उससे मारपीट करता था। वह घर में भी सेना की तरह अनुशासन चाहता था। उसकी इस आदत से वह बहुत परेशान रहने लगी थी। सोमवार की रात जब उसने उसके साथ मारपीट की तो उसने उसे खत्म कर मकान के पैसे लेकर गुजरात जाने का मन बना लिया था। रात को जब राजेंद्र सो रहा था तभी उसने उसके गले पर हंसिए से वार कर उसे मौत की नींद सुला दिया था। उसने कहा कि उसे पति की हत्या का कोई गम नही है। उसे सिर्फ अपने बच्चों के भविष्य की चिंता है।
पुलिस सूत्रों के मुताबिक वर्षा के संबंध शहर के ही एक युवक से हैं। कुछ दिनों पहले वर्षा 15 दिनों के लिए घर से भागी भी थी। मोहल्ले वालों ने भी पुलिस को बताया है कि वर्षा मोबाइल पर लंबी बात करती थी। पुलिस के मुताबिक, वर्षा के फोन कॉल डिटेल के आधार पर आगे जांच होगी। पुलिस को शक है हत्या और शव गाड़ने का काम अकेली महिला नहीं कर सकती।
हिंसक
सभ्य
समाज में महिलाएं अबला, बेचारी और सताई नारी के तमगों से नवाजी जाती रही
हैं. लेकिन बदलती फिजा में नकाब के पीछे छिपा उन का हिंसक और क्रूर चेहरा
अब दुनिया के सामने उजागर होता दिख रहा है. उन के हिंसक होने के पीछे की
मानसिकता को परत दर परत खोल रही हैं रेखा व्यास.
घरेलू सहायिका राखी की हत्या हो, एअरहोस्टैस द्वारा घरेलू मेड को बंदी बनाना हो या मां की हत्यारिन रूबी को उम्रकैद, ये सभी स्थितियां समाज को सन्न कर देने वाली हैं.
महिलाओं के इन रूपों पर सभी को यकीन नहीं होता. एक नन्हे से भू्रण को देह में रख उसे अपने खूनपसीने से सींच कर दुनिया की सब से बड़ी पीड़ा प्रसववेदना को जीवन में एक बार नहीं, कई बार सह कर जो स्त्री पूरी सृष्टि का संचालन कर रही है, आज उसे क्या हो गया है? आज उस की सृजनात्मक दुनिया इतनी विद्रूप व विध्वंसक कैसे हो गई है?
नारी के हिंसक रूप ने उस के अंतरिक्ष की ऊंचाई तक नापे गए सफलता के कदमों को बौना कर दिया है. हिंसा के हर रूप को आजमाती हुई वह अपनों को ही नहीं सब को शर्मसार कर रही है. उस के हिंसक रूप पर जल्दी से यकीन नहीं होता पर यथार्थ कौन नकार सकता है. घर, दफ्तर, बाजार, दीनदुनिया, फिल्में यानी हर जगह हिंसक स्त्री प्रकट होती जा रही है.
‘सात खून माफ’ नामक हिंदी फिल्म हो या हौलीवुड फिल्म ‘प्रोवोक्ड’, इन में पति की हत्यारिन महिलाओं को भी सहानुभूति के नजरिए से दिखाया गया है. उन के अपराध को सहज, प्राकृतिक या सुनियोजित अपराध नहीं माना गया. इसी प्रकार राजीव गांधी की हत्या में शामिल नलिनी मुरुगन की फांसी को आजीवन कारावास में तबदील किया गया तो इस पर बावेला नहीं मचा. इस तरह की हमारे आसपास और दुनियाभर में हजारों घटनाएं मिलेंगी जिन में महिलाओं को अपराध के बावजूद ‘बेचारी’ समझा गया या उन के पीछे पुरुषों या परिस्थितियों का हाथ समझा गया.
आमतौर पर शांत छवि
आमतौर पर महिलाओं की छवि शांत, धैर्यमयी, सहिष्णु, सहनशील और दयालु की है. इसीलिए उन का उग्र, आक्रामक तथा हिंसक रूप सहज स्वीकार्य नहीं. लोग अकसर इस का संबंध जैनेटिक मानते हैं. पुरुष में जहां यह बात आम मानी गई है वहीं महिला में विपरीत या अपवादस्वरूप ही ऐसा माना, स्वीकारा जाता है. उन्हें तन से ही नहीं, मन से भी लचीला और कोमल माना जाता है. उस के इसी रूप को ध्यान में रख कर आएदिन उस के पक्ष में कानून बन रहे हैं.
बदल रही हैं स्थितियां
पहले स्त्रियां कम पढ़ीलिखी थीं. उन पर ज्यादा बच्चे पैदा करने व लालनपालन करने का इतना जिम्मा और बोझ होता था कि कब उम्र बीत गई, पता ही नहीं चलता था. 40-50 साल की उम्र में ही वे नानीदादी बनी अपने को बड़ाबूढ़ा अनुभव करती थीं. अब औसत उम्र बढ़ने के साथ ही कम बच्चे, अच्छी शिक्षा व रहनसहन, स्वतंत्रता और बढ़ते अधिकारों ने उस की स्थिति बदल दी है. स्वतंत्रता ने उसे स्वच्छंद, उग्र व आक्रामक बना दिया है. आज उस के पास समझ, समय, साधन, संसाधन, अधिकार, जागरूकता आदि सबकुछ है. इन सब ने उसे सकारात्मक के साथसाथ नकारात्मक भी खूब बनाया है. आज आई क्यू के साथ ई क्यू यानी इमोशनल क्वोशंट पर भी बराबर जोर देने की जरूरत है.
गलत रोल मौडल
प्रकृति विज्ञानी डा. संसार चंद्र का कहना है कि अरसे से घर, परिवार व समाज को पुरुष लीड करते रहे. पुरुष प्रधानता के कारण स्त्रियों ने समझ लिया है कि पुरुष जैसे गुणों (असल में दुर्गुणों) के बिना वे राजकाज नहीं चला सकतीं. इस सफलता के लिए तेजतर्रार, उग्र, आक्रामक होना ही होगा इसलिए न चाहते हुए भी घरपरिवार, दफ्तर, सरकार सब जगह महिलाएं उग्र, आक्रामक, हिंसक होती जा रही हैं. फिर हमारे तथाकथित धार्मिक आदर्श भी उसे सिखाते हैं, जैसे ‘भय बिन प्रीत न होय गुसाईं.’ वह अपनी सफलता के लिए नकारात्मक स्थितियों का सहारा लेती है और फिर वैसी ही होती चली जाती है.
फेवर करते कानून
एडवोकेट अश्विनी शर्मा कहते हैं, ‘‘स्त्रियों पर अत्याचार आसानी से संभव होने के कारण उन के हक में कई कानून बनते हैं. इन कानूनों का महिलाएं मिसयूज करती हैं. इस से सामाजिक व पारिवारिक रूप से स्त्रियों का हिंसक रूप बढ़ता जा रहा है. पहले तलाक का बहुत ठोस कारण होता था. दहेज कानून लचीले हुए तो महिलाएं आसानी से इस का सहारा लेने लगीं. अपने हिंसक व आक्रामक व्यवहार को वे ससुरालियों पर थोपने लगीं. जीवन के प्रति उन का नजरिया बदला है. वे बदला प्रतिकार और सबक सिखाने के लिए कानून का सहारा लेती हैं.
‘‘हमारे पास इस तरह की महिलाएं आती हैं. वे चाहती हैं कि हम केस को लंबा खींचें ताकि उन के पति व घर वालों को अच्छा सबक मिले. हम उन्हें सचाई और अपने प्रोफैशनल एथिक्स से समझाते हैं तो कुछ मान जाती हैं जबकि कुछ हमें उपदेशक या गलत समझ लेती हैं.’’
एक और वकील वत्सल कुमार भी ‘वीमन फेवरिंग’ कानून को बढ़ती हिंसा का काफी हद तक जिम्मेदार मानते हैं. वे कानून को समझ कर ‘करे कोई भरे कोई’ वाली स्थिति सीख गई हैं. ऐसा नहीं है कि यह बात कोई जानतासमझता नहीं, धीरेधीरे लोग पुरुष उत्पीड़न व जरूरतमंद महिलाओं को लाभ न मिलने की स्थिति को काफी हद तक जाननेसमझने लगे हैं. हमारे देश के उदार और महिला लाभ वाले कानूनों का इसी तरह महिलाएं फायदा उठाती रहीं तो यह लाभ बंद किया जा सकता है. जिस से असली दुखी, उत्पीडि़त महिलाओं को उस का लाभ नहीं मिल पाएगा. हिंसक होने से स्त्री समाज को घाटा ज्यादा है.
कानून कितना ही लचीला और महिला फेवरिंग हो, फिर भी हिंसक महिलाओं को उस की कीमत चुकानी ही पड़ती है. सजा थोड़ी कम भी हो तो क्या सजा तो सजा ही है. शारदा जैन ने आत्माराम मर्डर केस में उम्रकैद की सजा पाई जबकि मुंबई में बच्चों की हत्यारिन कई महिलाएं फांसी के इंतजार में हैं. इन्हें महिला होने का लाभ भी मिले तो क्या, सामाजिक छवि में सुधार, सम्मानजनक जीवन व संतोष तो नहीं ही मिलता. गलत तो गलत ही होता है.
मनोवेत्ता व मनोचिकित्सक डा. नीलेश तिवारी कहते हैं, ‘‘महिलाएं भले ही हिंसक होती जा रही हैं पर ज्यों ही उन का क्रोध, आवेग, आक्रामकता शांत होती है वे पछतावे, प्रायश्चित्त व अवसाद की ज्यादा शिकार हो जाती हैं. फिर हिंसक पुरुष जितनी सहजता से सामाजिक जीवन में स्वीकार लिए जाते हैं उतनी सहजता से स्त्री नहीं स्वीकारी जाती. सामाजिक जीवन से दूर हो जाना, सामाजिक बहिष्कार और ऐसी ही पीड़ाएं एक हिंसक स्त्री को ज्यादा भोगनी पड़ती हैं.
‘‘स्त्री वर्ग में सुधार के बावजूद लोग उसे गलत समझते हैं. एक बार का लगा ठप्पा हटाने में अच्छी छवि भी काम नहीं आती. प्रेम में धोखा खाई हुई एक लड़की ने हाल में ही उस प्रेमी पर तेजाब फेंक दिया. किसी भी तरह इस हरकत को जस्टिफाई नहीं किया जा सकता.’’
क्रूरता के भयावह रूप
28 मार्च, 2012 : मेरठ में एक महिला ने वहशीपन की सारी हदें पार करते हुए अपने पति का गला रेत कर उस की हत्या कर दी और शव को घर के बाथरूम में गड्ढा खोद कर दफना दिया.
20 फरवरी, 2013 : इंदौर में खजराना इलाके की नादिरशाह कालोनी में एक औरत ने अपने पति को गोली मार दी. पति को गोली मारने के बाद महिला ने तड़पते हुए पति और खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था.
जुलाई, 2013 : प्रेम प्रसंग के चलते एक पत्नी ने पति को मार कर जमीन में दफना दिया. बवाना क्राइम ब्रांच पुलिस ने इस सनसनीखेज हत्याकांड का पर्दाफाश किया.
1 अक्तूबर, 2013 : दिल्ली के वसंतकुंज में मकान मालकिन ने एक नौकरानी को झाड़ू और डंडों से पीटा और प्रैस से जला भी दिया. मकानमालकिन पर नौकरानी को कुत्ते से कटवाने का भी आरोप है.
5 नवंबर, 2013 : उत्तर प्रदेश के बसपा सांसद धनंजय सिंह की पत्नी जागृति सिंह को क्रूरता की हद पार करते हुए अपनी 35 वर्षीय नौकरानी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया. जागृति के घरेलू सहायकसहायिकाओं पर जुल्मों की दास्तां सामने आ चुकी है.
उपरोक्त घटनाएं महिलाओं के बदलते आक्रामक रूप का पर्दाफाश करती हैं.
- See more at: http://www.sarita.in/social-18#sthash.ZkuP8Aph.dpuf
घरेलू सहायिका राखी की हत्या हो, एअरहोस्टैस द्वारा घरेलू मेड को बंदी बनाना हो या मां की हत्यारिन रूबी को उम्रकैद, ये सभी स्थितियां समाज को सन्न कर देने वाली हैं.
महिलाओं के इन रूपों पर सभी को यकीन नहीं होता. एक नन्हे से भू्रण को देह में रख उसे अपने खूनपसीने से सींच कर दुनिया की सब से बड़ी पीड़ा प्रसववेदना को जीवन में एक बार नहीं, कई बार सह कर जो स्त्री पूरी सृष्टि का संचालन कर रही है, आज उसे क्या हो गया है? आज उस की सृजनात्मक दुनिया इतनी विद्रूप व विध्वंसक कैसे हो गई है?
नारी के हिंसक रूप ने उस के अंतरिक्ष की ऊंचाई तक नापे गए सफलता के कदमों को बौना कर दिया है. हिंसा के हर रूप को आजमाती हुई वह अपनों को ही नहीं सब को शर्मसार कर रही है. उस के हिंसक रूप पर जल्दी से यकीन नहीं होता पर यथार्थ कौन नकार सकता है. घर, दफ्तर, बाजार, दीनदुनिया, फिल्में यानी हर जगह हिंसक स्त्री प्रकट होती जा रही है.
‘सात खून माफ’ नामक हिंदी फिल्म हो या हौलीवुड फिल्म ‘प्रोवोक्ड’, इन में पति की हत्यारिन महिलाओं को भी सहानुभूति के नजरिए से दिखाया गया है. उन के अपराध को सहज, प्राकृतिक या सुनियोजित अपराध नहीं माना गया. इसी प्रकार राजीव गांधी की हत्या में शामिल नलिनी मुरुगन की फांसी को आजीवन कारावास में तबदील किया गया तो इस पर बावेला नहीं मचा. इस तरह की हमारे आसपास और दुनियाभर में हजारों घटनाएं मिलेंगी जिन में महिलाओं को अपराध के बावजूद ‘बेचारी’ समझा गया या उन के पीछे पुरुषों या परिस्थितियों का हाथ समझा गया.
आमतौर पर शांत छवि
आमतौर पर महिलाओं की छवि शांत, धैर्यमयी, सहिष्णु, सहनशील और दयालु की है. इसीलिए उन का उग्र, आक्रामक तथा हिंसक रूप सहज स्वीकार्य नहीं. लोग अकसर इस का संबंध जैनेटिक मानते हैं. पुरुष में जहां यह बात आम मानी गई है वहीं महिला में विपरीत या अपवादस्वरूप ही ऐसा माना, स्वीकारा जाता है. उन्हें तन से ही नहीं, मन से भी लचीला और कोमल माना जाता है. उस के इसी रूप को ध्यान में रख कर आएदिन उस के पक्ष में कानून बन रहे हैं.
बदल रही हैं स्थितियां
पहले स्त्रियां कम पढ़ीलिखी थीं. उन पर ज्यादा बच्चे पैदा करने व लालनपालन करने का इतना जिम्मा और बोझ होता था कि कब उम्र बीत गई, पता ही नहीं चलता था. 40-50 साल की उम्र में ही वे नानीदादी बनी अपने को बड़ाबूढ़ा अनुभव करती थीं. अब औसत उम्र बढ़ने के साथ ही कम बच्चे, अच्छी शिक्षा व रहनसहन, स्वतंत्रता और बढ़ते अधिकारों ने उस की स्थिति बदल दी है. स्वतंत्रता ने उसे स्वच्छंद, उग्र व आक्रामक बना दिया है. आज उस के पास समझ, समय, साधन, संसाधन, अधिकार, जागरूकता आदि सबकुछ है. इन सब ने उसे सकारात्मक के साथसाथ नकारात्मक भी खूब बनाया है. आज आई क्यू के साथ ई क्यू यानी इमोशनल क्वोशंट पर भी बराबर जोर देने की जरूरत है.
गलत रोल मौडल
प्रकृति विज्ञानी डा. संसार चंद्र का कहना है कि अरसे से घर, परिवार व समाज को पुरुष लीड करते रहे. पुरुष प्रधानता के कारण स्त्रियों ने समझ लिया है कि पुरुष जैसे गुणों (असल में दुर्गुणों) के बिना वे राजकाज नहीं चला सकतीं. इस सफलता के लिए तेजतर्रार, उग्र, आक्रामक होना ही होगा इसलिए न चाहते हुए भी घरपरिवार, दफ्तर, सरकार सब जगह महिलाएं उग्र, आक्रामक, हिंसक होती जा रही हैं. फिर हमारे तथाकथित धार्मिक आदर्श भी उसे सिखाते हैं, जैसे ‘भय बिन प्रीत न होय गुसाईं.’ वह अपनी सफलता के लिए नकारात्मक स्थितियों का सहारा लेती है और फिर वैसी ही होती चली जाती है.
फेवर करते कानून
एडवोकेट अश्विनी शर्मा कहते हैं, ‘‘स्त्रियों पर अत्याचार आसानी से संभव होने के कारण उन के हक में कई कानून बनते हैं. इन कानूनों का महिलाएं मिसयूज करती हैं. इस से सामाजिक व पारिवारिक रूप से स्त्रियों का हिंसक रूप बढ़ता जा रहा है. पहले तलाक का बहुत ठोस कारण होता था. दहेज कानून लचीले हुए तो महिलाएं आसानी से इस का सहारा लेने लगीं. अपने हिंसक व आक्रामक व्यवहार को वे ससुरालियों पर थोपने लगीं. जीवन के प्रति उन का नजरिया बदला है. वे बदला प्रतिकार और सबक सिखाने के लिए कानून का सहारा लेती हैं.
‘‘हमारे पास इस तरह की महिलाएं आती हैं. वे चाहती हैं कि हम केस को लंबा खींचें ताकि उन के पति व घर वालों को अच्छा सबक मिले. हम उन्हें सचाई और अपने प्रोफैशनल एथिक्स से समझाते हैं तो कुछ मान जाती हैं जबकि कुछ हमें उपदेशक या गलत समझ लेती हैं.’’
एक और वकील वत्सल कुमार भी ‘वीमन फेवरिंग’ कानून को बढ़ती हिंसा का काफी हद तक जिम्मेदार मानते हैं. वे कानून को समझ कर ‘करे कोई भरे कोई’ वाली स्थिति सीख गई हैं. ऐसा नहीं है कि यह बात कोई जानतासमझता नहीं, धीरेधीरे लोग पुरुष उत्पीड़न व जरूरतमंद महिलाओं को लाभ न मिलने की स्थिति को काफी हद तक जाननेसमझने लगे हैं. हमारे देश के उदार और महिला लाभ वाले कानूनों का इसी तरह महिलाएं फायदा उठाती रहीं तो यह लाभ बंद किया जा सकता है. जिस से असली दुखी, उत्पीडि़त महिलाओं को उस का लाभ नहीं मिल पाएगा. हिंसक होने से स्त्री समाज को घाटा ज्यादा है.
कानून कितना ही लचीला और महिला फेवरिंग हो, फिर भी हिंसक महिलाओं को उस की कीमत चुकानी ही पड़ती है. सजा थोड़ी कम भी हो तो क्या सजा तो सजा ही है. शारदा जैन ने आत्माराम मर्डर केस में उम्रकैद की सजा पाई जबकि मुंबई में बच्चों की हत्यारिन कई महिलाएं फांसी के इंतजार में हैं. इन्हें महिला होने का लाभ भी मिले तो क्या, सामाजिक छवि में सुधार, सम्मानजनक जीवन व संतोष तो नहीं ही मिलता. गलत तो गलत ही होता है.
मनोवेत्ता व मनोचिकित्सक डा. नीलेश तिवारी कहते हैं, ‘‘महिलाएं भले ही हिंसक होती जा रही हैं पर ज्यों ही उन का क्रोध, आवेग, आक्रामकता शांत होती है वे पछतावे, प्रायश्चित्त व अवसाद की ज्यादा शिकार हो जाती हैं. फिर हिंसक पुरुष जितनी सहजता से सामाजिक जीवन में स्वीकार लिए जाते हैं उतनी सहजता से स्त्री नहीं स्वीकारी जाती. सामाजिक जीवन से दूर हो जाना, सामाजिक बहिष्कार और ऐसी ही पीड़ाएं एक हिंसक स्त्री को ज्यादा भोगनी पड़ती हैं.
‘‘स्त्री वर्ग में सुधार के बावजूद लोग उसे गलत समझते हैं. एक बार का लगा ठप्पा हटाने में अच्छी छवि भी काम नहीं आती. प्रेम में धोखा खाई हुई एक लड़की ने हाल में ही उस प्रेमी पर तेजाब फेंक दिया. किसी भी तरह इस हरकत को जस्टिफाई नहीं किया जा सकता.’’
क्रूरता के भयावह रूप
28 मार्च, 2012 : मेरठ में एक महिला ने वहशीपन की सारी हदें पार करते हुए अपने पति का गला रेत कर उस की हत्या कर दी और शव को घर के बाथरूम में गड्ढा खोद कर दफना दिया.
20 फरवरी, 2013 : इंदौर में खजराना इलाके की नादिरशाह कालोनी में एक औरत ने अपने पति को गोली मार दी. पति को गोली मारने के बाद महिला ने तड़पते हुए पति और खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था.
जुलाई, 2013 : प्रेम प्रसंग के चलते एक पत्नी ने पति को मार कर जमीन में दफना दिया. बवाना क्राइम ब्रांच पुलिस ने इस सनसनीखेज हत्याकांड का पर्दाफाश किया.
1 अक्तूबर, 2013 : दिल्ली के वसंतकुंज में मकान मालकिन ने एक नौकरानी को झाड़ू और डंडों से पीटा और प्रैस से जला भी दिया. मकानमालकिन पर नौकरानी को कुत्ते से कटवाने का भी आरोप है.
5 नवंबर, 2013 : उत्तर प्रदेश के बसपा सांसद धनंजय सिंह की पत्नी जागृति सिंह को क्रूरता की हद पार करते हुए अपनी 35 वर्षीय नौकरानी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया. जागृति के घरेलू सहायकसहायिकाओं पर जुल्मों की दास्तां सामने आ चुकी है.
उपरोक्त घटनाएं महिलाओं के बदलते आक्रामक रूप का पर्दाफाश करती हैं.
- See more at: http://www.sarita.in/social-18#sthash.ZkuP8Aph.dpuf
सभ्य
समाज में महिलाएं अबला, बेचारी और सताई नारी के तमगों से नवाजी जाती रही
हैं. लेकिन बदलती फिजा में नकाब के पीछे छिपा उन का हिंसक और क्रूर चेहरा
अब दुनिया के सामने उजागर होता दिख रहा है. उन के हिंसक होने के पीछे की
मानसिकता को परत दर परत खोल रही हैं रेखा व्यास.
घरेलू सहायिका राखी की हत्या हो, एअरहोस्टैस द्वारा घरेलू मेड को बंदी बनाना हो या मां की हत्यारिन रूबी को उम्रकैद, ये सभी स्थितियां समाज को सन्न कर देने वाली हैं.
महिलाओं के इन रूपों पर सभी को यकीन नहीं होता. एक नन्हे से भू्रण को देह में रख उसे अपने खूनपसीने से सींच कर दुनिया की सब से बड़ी पीड़ा प्रसववेदना को जीवन में एक बार नहीं, कई बार सह कर जो स्त्री पूरी सृष्टि का संचालन कर रही है, आज उसे क्या हो गया है? आज उस की सृजनात्मक दुनिया इतनी विद्रूप व विध्वंसक कैसे हो गई है?
नारी के हिंसक रूप ने उस के अंतरिक्ष की ऊंचाई तक नापे गए सफलता के कदमों को बौना कर दिया है. हिंसा के हर रूप को आजमाती हुई वह अपनों को ही नहीं सब को शर्मसार कर रही है. उस के हिंसक रूप पर जल्दी से यकीन नहीं होता पर यथार्थ कौन नकार सकता है. घर, दफ्तर, बाजार, दीनदुनिया, फिल्में यानी हर जगह हिंसक स्त्री प्रकट होती जा रही है.
‘सात खून माफ’ नामक हिंदी फिल्म हो या हौलीवुड फिल्म ‘प्रोवोक्ड’, इन में पति की हत्यारिन महिलाओं को भी सहानुभूति के नजरिए से दिखाया गया है. उन के अपराध को सहज, प्राकृतिक या सुनियोजित अपराध नहीं माना गया. इसी प्रकार राजीव गांधी की हत्या में शामिल नलिनी मुरुगन की फांसी को आजीवन कारावास में तबदील किया गया तो इस पर बावेला नहीं मचा. इस तरह की हमारे आसपास और दुनियाभर में हजारों घटनाएं मिलेंगी जिन में महिलाओं को अपराध के बावजूद ‘बेचारी’ समझा गया या उन के पीछे पुरुषों या परिस्थितियों का हाथ समझा गया.
आमतौर पर शांत छवि
आमतौर पर महिलाओं की छवि शांत, धैर्यमयी, सहिष्णु, सहनशील और दयालु की है. इसीलिए उन का उग्र, आक्रामक तथा हिंसक रूप सहज स्वीकार्य नहीं. लोग अकसर इस का संबंध जैनेटिक मानते हैं. पुरुष में जहां यह बात आम मानी गई है वहीं महिला में विपरीत या अपवादस्वरूप ही ऐसा माना, स्वीकारा जाता है. उन्हें तन से ही नहीं, मन से भी लचीला और कोमल माना जाता है. उस के इसी रूप को ध्यान में रख कर आएदिन उस के पक्ष में कानून बन रहे हैं.
बदल रही हैं स्थितियां
पहले स्त्रियां कम पढ़ीलिखी थीं. उन पर ज्यादा बच्चे पैदा करने व लालनपालन करने का इतना जिम्मा और बोझ होता था कि कब उम्र बीत गई, पता ही नहीं चलता था. 40-50 साल की उम्र में ही वे नानीदादी बनी अपने को बड़ाबूढ़ा अनुभव करती थीं. अब औसत उम्र बढ़ने के साथ ही कम बच्चे, अच्छी शिक्षा व रहनसहन, स्वतंत्रता और बढ़ते अधिकारों ने उस की स्थिति बदल दी है. स्वतंत्रता ने उसे स्वच्छंद, उग्र व आक्रामक बना दिया है. आज उस के पास समझ, समय, साधन, संसाधन, अधिकार, जागरूकता आदि सबकुछ है. इन सब ने उसे सकारात्मक के साथसाथ नकारात्मक भी खूब बनाया है. आज आई क्यू के साथ ई क्यू यानी इमोशनल क्वोशंट पर भी बराबर जोर देने की जरूरत है.
गलत रोल मौडल
प्रकृति विज्ञानी डा. संसार चंद्र का कहना है कि अरसे से घर, परिवार व समाज को पुरुष लीड करते रहे. पुरुष प्रधानता के कारण स्त्रियों ने समझ लिया है कि पुरुष जैसे गुणों (असल में दुर्गुणों) के बिना वे राजकाज नहीं चला सकतीं. इस सफलता के लिए तेजतर्रार, उग्र, आक्रामक होना ही होगा इसलिए न चाहते हुए भी घरपरिवार, दफ्तर, सरकार सब जगह महिलाएं उग्र, आक्रामक, हिंसक होती जा रही हैं. फिर हमारे तथाकथित धार्मिक आदर्श भी उसे सिखाते हैं, जैसे ‘भय बिन प्रीत न होय गुसाईं.’ वह अपनी सफलता के लिए नकारात्मक स्थितियों का सहारा लेती है और फिर वैसी ही होती चली जाती है.
फेवर करते कानून
एडवोकेट अश्विनी शर्मा कहते हैं, ‘‘स्त्रियों पर अत्याचार आसानी से संभव होने के कारण उन के हक में कई कानून बनते हैं. इन कानूनों का महिलाएं मिसयूज करती हैं. इस से सामाजिक व पारिवारिक रूप से स्त्रियों का हिंसक रूप बढ़ता जा रहा है. पहले तलाक का बहुत ठोस कारण होता था. दहेज कानून लचीले हुए तो महिलाएं आसानी से इस का सहारा लेने लगीं. अपने हिंसक व आक्रामक व्यवहार को वे ससुरालियों पर थोपने लगीं. जीवन के प्रति उन का नजरिया बदला है. वे बदला प्रतिकार और सबक सिखाने के लिए कानून का सहारा लेती हैं.
‘‘हमारे पास इस तरह की महिलाएं आती हैं. वे चाहती हैं कि हम केस को लंबा खींचें ताकि उन के पति व घर वालों को अच्छा सबक मिले. हम उन्हें सचाई और अपने प्रोफैशनल एथिक्स से समझाते हैं तो कुछ मान जाती हैं जबकि कुछ हमें उपदेशक या गलत समझ लेती हैं.’’
एक और वकील वत्सल कुमार भी ‘वीमन फेवरिंग’ कानून को बढ़ती हिंसा का काफी हद तक जिम्मेदार मानते हैं. वे कानून को समझ कर ‘करे कोई भरे कोई’ वाली स्थिति सीख गई हैं. ऐसा नहीं है कि यह बात कोई जानतासमझता नहीं, धीरेधीरे लोग पुरुष उत्पीड़न व जरूरतमंद महिलाओं को लाभ न मिलने की स्थिति को काफी हद तक जाननेसमझने लगे हैं. हमारे देश के उदार और महिला लाभ वाले कानूनों का इसी तरह महिलाएं फायदा उठाती रहीं तो यह लाभ बंद किया जा सकता है. जिस से असली दुखी, उत्पीडि़त महिलाओं को उस का लाभ नहीं मिल पाएगा. हिंसक होने से स्त्री समाज को घाटा ज्यादा है.
कानून कितना ही लचीला और महिला फेवरिंग हो, फिर भी हिंसक महिलाओं को उस की कीमत चुकानी ही पड़ती है. सजा थोड़ी कम भी हो तो क्या सजा तो सजा ही है. शारदा जैन ने आत्माराम मर्डर केस में उम्रकैद की सजा पाई जबकि मुंबई में बच्चों की हत्यारिन कई महिलाएं फांसी के इंतजार में हैं. इन्हें महिला होने का लाभ भी मिले तो क्या, सामाजिक छवि में सुधार, सम्मानजनक जीवन व संतोष तो नहीं ही मिलता. गलत तो गलत ही होता है.
मनोवेत्ता व मनोचिकित्सक डा. नीलेश तिवारी कहते हैं, ‘‘महिलाएं भले ही हिंसक होती जा रही हैं पर ज्यों ही उन का क्रोध, आवेग, आक्रामकता शांत होती है वे पछतावे, प्रायश्चित्त व अवसाद की ज्यादा शिकार हो जाती हैं. फिर हिंसक पुरुष जितनी सहजता से सामाजिक जीवन में स्वीकार लिए जाते हैं उतनी सहजता से स्त्री नहीं स्वीकारी जाती. सामाजिक जीवन से दूर हो जाना, सामाजिक बहिष्कार और ऐसी ही पीड़ाएं एक हिंसक स्त्री को ज्यादा भोगनी पड़ती हैं.
‘‘स्त्री वर्ग में सुधार के बावजूद लोग उसे गलत समझते हैं. एक बार का लगा ठप्पा हटाने में अच्छी छवि भी काम नहीं आती. प्रेम में धोखा खाई हुई एक लड़की ने हाल में ही उस प्रेमी पर तेजाब फेंक दिया. किसी भी तरह इस हरकत को जस्टिफाई नहीं किया जा सकता.’’
क्रूरता के भयावह रूप
28 मार्च, 2012 : मेरठ में एक महिला ने वहशीपन की सारी हदें पार करते हुए अपने पति का गला रेत कर उस की हत्या कर दी और शव को घर के बाथरूम में गड्ढा खोद कर दफना दिया.
20 फरवरी, 2013 : इंदौर में खजराना इलाके की नादिरशाह कालोनी में एक औरत ने अपने पति को गोली मार दी. पति को गोली मारने के बाद महिला ने तड़पते हुए पति और खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था.
जुलाई, 2013 : प्रेम प्रसंग के चलते एक पत्नी ने पति को मार कर जमीन में दफना दिया. बवाना क्राइम ब्रांच पुलिस ने इस सनसनीखेज हत्याकांड का पर्दाफाश किया.
1 अक्तूबर, 2013 : दिल्ली के वसंतकुंज में मकान मालकिन ने एक नौकरानी को झाड़ू और डंडों से पीटा और प्रैस से जला भी दिया. मकानमालकिन पर नौकरानी को कुत्ते से कटवाने का भी आरोप है.
5 नवंबर, 2013 : उत्तर प्रदेश के बसपा सांसद धनंजय सिंह की पत्नी जागृति सिंह को क्रूरता की हद पार करते हुए अपनी 35 वर्षीय नौकरानी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया. जागृति के घरेलू सहायकसहायिकाओं पर जुल्मों की दास्तां सामने आ चुकी है.
उपरोक्त घटनाएं महिलाओं के बदलते आक्रामक रूप का पर्दाफाश करती हैं.
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घरेलू सहायिका राखी की हत्या हो, एअरहोस्टैस द्वारा घरेलू मेड को बंदी बनाना हो या मां की हत्यारिन रूबी को उम्रकैद, ये सभी स्थितियां समाज को सन्न कर देने वाली हैं.
महिलाओं के इन रूपों पर सभी को यकीन नहीं होता. एक नन्हे से भू्रण को देह में रख उसे अपने खूनपसीने से सींच कर दुनिया की सब से बड़ी पीड़ा प्रसववेदना को जीवन में एक बार नहीं, कई बार सह कर जो स्त्री पूरी सृष्टि का संचालन कर रही है, आज उसे क्या हो गया है? आज उस की सृजनात्मक दुनिया इतनी विद्रूप व विध्वंसक कैसे हो गई है?
नारी के हिंसक रूप ने उस के अंतरिक्ष की ऊंचाई तक नापे गए सफलता के कदमों को बौना कर दिया है. हिंसा के हर रूप को आजमाती हुई वह अपनों को ही नहीं सब को शर्मसार कर रही है. उस के हिंसक रूप पर जल्दी से यकीन नहीं होता पर यथार्थ कौन नकार सकता है. घर, दफ्तर, बाजार, दीनदुनिया, फिल्में यानी हर जगह हिंसक स्त्री प्रकट होती जा रही है.
‘सात खून माफ’ नामक हिंदी फिल्म हो या हौलीवुड फिल्म ‘प्रोवोक्ड’, इन में पति की हत्यारिन महिलाओं को भी सहानुभूति के नजरिए से दिखाया गया है. उन के अपराध को सहज, प्राकृतिक या सुनियोजित अपराध नहीं माना गया. इसी प्रकार राजीव गांधी की हत्या में शामिल नलिनी मुरुगन की फांसी को आजीवन कारावास में तबदील किया गया तो इस पर बावेला नहीं मचा. इस तरह की हमारे आसपास और दुनियाभर में हजारों घटनाएं मिलेंगी जिन में महिलाओं को अपराध के बावजूद ‘बेचारी’ समझा गया या उन के पीछे पुरुषों या परिस्थितियों का हाथ समझा गया.
आमतौर पर शांत छवि
आमतौर पर महिलाओं की छवि शांत, धैर्यमयी, सहिष्णु, सहनशील और दयालु की है. इसीलिए उन का उग्र, आक्रामक तथा हिंसक रूप सहज स्वीकार्य नहीं. लोग अकसर इस का संबंध जैनेटिक मानते हैं. पुरुष में जहां यह बात आम मानी गई है वहीं महिला में विपरीत या अपवादस्वरूप ही ऐसा माना, स्वीकारा जाता है. उन्हें तन से ही नहीं, मन से भी लचीला और कोमल माना जाता है. उस के इसी रूप को ध्यान में रख कर आएदिन उस के पक्ष में कानून बन रहे हैं.
बदल रही हैं स्थितियां
पहले स्त्रियां कम पढ़ीलिखी थीं. उन पर ज्यादा बच्चे पैदा करने व लालनपालन करने का इतना जिम्मा और बोझ होता था कि कब उम्र बीत गई, पता ही नहीं चलता था. 40-50 साल की उम्र में ही वे नानीदादी बनी अपने को बड़ाबूढ़ा अनुभव करती थीं. अब औसत उम्र बढ़ने के साथ ही कम बच्चे, अच्छी शिक्षा व रहनसहन, स्वतंत्रता और बढ़ते अधिकारों ने उस की स्थिति बदल दी है. स्वतंत्रता ने उसे स्वच्छंद, उग्र व आक्रामक बना दिया है. आज उस के पास समझ, समय, साधन, संसाधन, अधिकार, जागरूकता आदि सबकुछ है. इन सब ने उसे सकारात्मक के साथसाथ नकारात्मक भी खूब बनाया है. आज आई क्यू के साथ ई क्यू यानी इमोशनल क्वोशंट पर भी बराबर जोर देने की जरूरत है.
गलत रोल मौडल
प्रकृति विज्ञानी डा. संसार चंद्र का कहना है कि अरसे से घर, परिवार व समाज को पुरुष लीड करते रहे. पुरुष प्रधानता के कारण स्त्रियों ने समझ लिया है कि पुरुष जैसे गुणों (असल में दुर्गुणों) के बिना वे राजकाज नहीं चला सकतीं. इस सफलता के लिए तेजतर्रार, उग्र, आक्रामक होना ही होगा इसलिए न चाहते हुए भी घरपरिवार, दफ्तर, सरकार सब जगह महिलाएं उग्र, आक्रामक, हिंसक होती जा रही हैं. फिर हमारे तथाकथित धार्मिक आदर्श भी उसे सिखाते हैं, जैसे ‘भय बिन प्रीत न होय गुसाईं.’ वह अपनी सफलता के लिए नकारात्मक स्थितियों का सहारा लेती है और फिर वैसी ही होती चली जाती है.
फेवर करते कानून
एडवोकेट अश्विनी शर्मा कहते हैं, ‘‘स्त्रियों पर अत्याचार आसानी से संभव होने के कारण उन के हक में कई कानून बनते हैं. इन कानूनों का महिलाएं मिसयूज करती हैं. इस से सामाजिक व पारिवारिक रूप से स्त्रियों का हिंसक रूप बढ़ता जा रहा है. पहले तलाक का बहुत ठोस कारण होता था. दहेज कानून लचीले हुए तो महिलाएं आसानी से इस का सहारा लेने लगीं. अपने हिंसक व आक्रामक व्यवहार को वे ससुरालियों पर थोपने लगीं. जीवन के प्रति उन का नजरिया बदला है. वे बदला प्रतिकार और सबक सिखाने के लिए कानून का सहारा लेती हैं.
‘‘हमारे पास इस तरह की महिलाएं आती हैं. वे चाहती हैं कि हम केस को लंबा खींचें ताकि उन के पति व घर वालों को अच्छा सबक मिले. हम उन्हें सचाई और अपने प्रोफैशनल एथिक्स से समझाते हैं तो कुछ मान जाती हैं जबकि कुछ हमें उपदेशक या गलत समझ लेती हैं.’’
एक और वकील वत्सल कुमार भी ‘वीमन फेवरिंग’ कानून को बढ़ती हिंसा का काफी हद तक जिम्मेदार मानते हैं. वे कानून को समझ कर ‘करे कोई भरे कोई’ वाली स्थिति सीख गई हैं. ऐसा नहीं है कि यह बात कोई जानतासमझता नहीं, धीरेधीरे लोग पुरुष उत्पीड़न व जरूरतमंद महिलाओं को लाभ न मिलने की स्थिति को काफी हद तक जाननेसमझने लगे हैं. हमारे देश के उदार और महिला लाभ वाले कानूनों का इसी तरह महिलाएं फायदा उठाती रहीं तो यह लाभ बंद किया जा सकता है. जिस से असली दुखी, उत्पीडि़त महिलाओं को उस का लाभ नहीं मिल पाएगा. हिंसक होने से स्त्री समाज को घाटा ज्यादा है.
कानून कितना ही लचीला और महिला फेवरिंग हो, फिर भी हिंसक महिलाओं को उस की कीमत चुकानी ही पड़ती है. सजा थोड़ी कम भी हो तो क्या सजा तो सजा ही है. शारदा जैन ने आत्माराम मर्डर केस में उम्रकैद की सजा पाई जबकि मुंबई में बच्चों की हत्यारिन कई महिलाएं फांसी के इंतजार में हैं. इन्हें महिला होने का लाभ भी मिले तो क्या, सामाजिक छवि में सुधार, सम्मानजनक जीवन व संतोष तो नहीं ही मिलता. गलत तो गलत ही होता है.
मनोवेत्ता व मनोचिकित्सक डा. नीलेश तिवारी कहते हैं, ‘‘महिलाएं भले ही हिंसक होती जा रही हैं पर ज्यों ही उन का क्रोध, आवेग, आक्रामकता शांत होती है वे पछतावे, प्रायश्चित्त व अवसाद की ज्यादा शिकार हो जाती हैं. फिर हिंसक पुरुष जितनी सहजता से सामाजिक जीवन में स्वीकार लिए जाते हैं उतनी सहजता से स्त्री नहीं स्वीकारी जाती. सामाजिक जीवन से दूर हो जाना, सामाजिक बहिष्कार और ऐसी ही पीड़ाएं एक हिंसक स्त्री को ज्यादा भोगनी पड़ती हैं.
‘‘स्त्री वर्ग में सुधार के बावजूद लोग उसे गलत समझते हैं. एक बार का लगा ठप्पा हटाने में अच्छी छवि भी काम नहीं आती. प्रेम में धोखा खाई हुई एक लड़की ने हाल में ही उस प्रेमी पर तेजाब फेंक दिया. किसी भी तरह इस हरकत को जस्टिफाई नहीं किया जा सकता.’’
क्रूरता के भयावह रूप
28 मार्च, 2012 : मेरठ में एक महिला ने वहशीपन की सारी हदें पार करते हुए अपने पति का गला रेत कर उस की हत्या कर दी और शव को घर के बाथरूम में गड्ढा खोद कर दफना दिया.
20 फरवरी, 2013 : इंदौर में खजराना इलाके की नादिरशाह कालोनी में एक औरत ने अपने पति को गोली मार दी. पति को गोली मारने के बाद महिला ने तड़पते हुए पति और खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था.
जुलाई, 2013 : प्रेम प्रसंग के चलते एक पत्नी ने पति को मार कर जमीन में दफना दिया. बवाना क्राइम ब्रांच पुलिस ने इस सनसनीखेज हत्याकांड का पर्दाफाश किया.
1 अक्तूबर, 2013 : दिल्ली के वसंतकुंज में मकान मालकिन ने एक नौकरानी को झाड़ू और डंडों से पीटा और प्रैस से जला भी दिया. मकानमालकिन पर नौकरानी को कुत्ते से कटवाने का भी आरोप है.
5 नवंबर, 2013 : उत्तर प्रदेश के बसपा सांसद धनंजय सिंह की पत्नी जागृति सिंह को क्रूरता की हद पार करते हुए अपनी 35 वर्षीय नौकरानी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया. जागृति के घरेलू सहायकसहायिकाओं पर जुल्मों की दास्तां सामने आ चुकी है.
उपरोक्त घटनाएं महिलाओं के बदलते आक्रामक रूप का पर्दाफाश करती हैं.
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